बिहार मे सहजन की खेती | किसानों की आय बढ़ाएगी राज्य सरकार
बिहार मे सहजन की खेती :- राज्य सरकार सहजन की खेती से किसानों की आमदनी बढ़ाएगी। सहजन पेड़ की जड़ से लेकर पत्ता और फल तक के लिए बाजार की व्यवस्था करेगी। साथ ही इसकी प्रोसेसिंग और कटनी के बाद प्रबंधन की भी व्यवस्था करेगी। इसके लिए सरकार ने 780 हेक्टेयर में सहजन की खेती का लक्ष्य रखा है।
किसानों को लागत की आधी राशि सरकार देगी
वही इस योजना के अंतर्गत किसानों को लागत की आधी राशि सरकार देगी। राज्य सरकार ने सहजन की खेती को विस्तार देने की योजना को मंजूरी दे दी है। इसकी खेती करने वाले किसानों को लागत का आधा हिस्सा सरकार देगी, लेकिन अनुदान राशि दो किस्त मे किसानों को दी जाएगी। पहली किस्त का भुगतान तो पहले हो जाएगा, लेकिन दूसरी किस्त का भुगतान सालभर बाद तभी होगा जब 90 प्रतिशत पौधे जीवित रहेंगे।
सरकार इसकी प्रोसेसिंग की व्यवस्था भी करेगी
इसकी प्रोसेसिंग की व्यवस्था करने की भी योजना है। विभाग ने योजना पर काम शुरू कर दिया है। इसके अंतर्गत एक हेक्टेयर में सहजन की खेती में 74,000 रुपये लागत का आकलन किया गया है। सरकार किसानों को लागत का 50 प्रतिशत यानि 37,000 रुपये प्रति हेक्टेयर अनुदान देगी।
अनुदान की राशि दो किस्तों में दी जाएगी। सहजन की खेती के लिए पहले वर्ष में पहली किस्त के रूप में 27,750 रुपये प्रति हेक्टेयर और दूसरे वर्ष दूसरी किस्त के रूप में 9,250 रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से अनुदान मिलेगा। शर्त है कि दूसरे साल में 90 प्रतिशत सहजन के पेड़ जीवित रहने चाहिए।
सरकार ने सहजन उत्पाद का पोस्ट हार्वेस्ट मैनेजमेंट की योजना भी है। इसके तहत सोलर कोल्ड रूम, सोलर ड्रायर, प्राइमरी पैक हाऊस इत्यादि को शामिल किया गया है।
सहजन से आयुर्वेदिक दवा तैयार की है योजना
कृषि विभाग ने राज्य में औषधीय पौधों की बढ़ रही खेती के बीच सहजन को भी उस श्रेणी में जोड़ दिया है। सरकार का मानना है कि सहजन की खेती से किसानों को अधिक लाभ होगा। इसके पेड के सभी भागों का उपयोग भोजन के साथ दवा बनाने के काम में भी होता है।
इसमें विटामिन एवं पोषक तत्व पाये जाते हैं। सहजन के फूल, फल और पत्तियों का भोजन के रूप में व्यवहार किया जाता है। इसी के साथ इसकी छाल, पत्ती, बीज, गोंद, जड़ आदि से आयुर्वेदिक दवा तैयार की जाती है। सहजन के इन गुणों के कारण ही राज्य में सहजन का क्षेत्र विस्तार कार्यक्रम कार्यान्वित किया जा रहा है। किसानों को इससे पारंपरिक खेती से ज्यादा लाभ होगा।
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