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Bihar me Jute ki Kheti

बिहार मे जुट की खेती:- भारत में जुट या पटसन कि खेती काफी बड़ी मात्रा में होती है। इस बात का अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते है कि, विश्व के 60% जुट का उत्पादन भारत में होता है।

भारत में देखे तो 70% पटसन का उत्पादन पश्चिम बंगाल में होता है। अगर हम और गहराई में जाए तो बंगाल का 80% जुट उत्पादन बंगाल के दो जिले मुर्शिदाबाद और नादिया में होता है।

और आगे हम जानेंगे कि जुट कि खेती किस प्रकार की जाती है और इसके फसल के लिए उपयुक्त मौसम कैसा होना चाहिए। साथ ही ये भी जानेंगे की जुट का उत्पादन कैसे बढ़ा सकते है। मौजूदा दौर मे सरकार की कौन सी योजनाए का लाभ जुट किसान उठा सकते है।

जुट कि खेती के लिए उत्तम समय

जुट खरीफ मौसम का फसल है। और इस फसल को पानी की काफी जरूरत होती है। जुट की खेती के लिए सबसे उपयुक्त समय होता है, मई से अगस्त महीना। चुकी इस समय सम्पूर्ण भारत मे मॉनसूनी बारिश शुरू हो जाती है। और जैसा हम बता चुके है की ये फसल पानी पर ही निर्भर है।

अगर जुट की बुआई मई से अगस्त के बीच की जाए तो हम इससे अधिकतम उत्पादन प्राप्त कर सकते है। ये फसल 120 दिनों का होता है। और उसके बाद 15-20 दिन इससे चाहिए होता है सड़ने के लिए। सड़ने के बाद ही हमे इससे fibre मिलता है।

भारत के प्रमुख जुट उत्पादक राज्य

पश्चिम बंगाल के आलावा निम्न राज्यो में भी अच्छी खासी मात्रा में जुट कि फसल होती है। असम, बिहार, आंध्र प्रदेश, मेघालय, ओडिशा, त्रिपुरा एवम् उत्तर प्रदेश। कई प्रदेशों मे पटसन को साग के तौर पे खाने मे प्रयोग किया जाता है।

जुट कि खेती को बढ़ावा देती प्रमुख केंद्रीय संस्थाएं

भारत में जुटे के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कुछ केंद्रीय संस्थाएं कार्यरत है। उनमें प्रमुख रूप से देखे तो तीन संस्थाओं का नाम आता है।

1) नेशनल जुट बोर्ड (NJB)
2) जुट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (JCI)
3) सेंट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर जुट एंड एलाइड फाइब्रेस (CRIJAF)
आइए ऊपर दिए गए संस्थाओं के बारे में संक्षिप्त में जानते है।

नेशनल जुट बोर्ड (NJB):-

NJB जुट से जुड़े तीन तीन क्षेत्रों को आपस में जोडने वाली कड़ी के रूप में काम करती है। ये तीन कड़ी इस प्रकार है:- क) जुट किसान ख) जुट मिल के कामगार ग) जुट से सामान बनाने वाले कलाकार।

NJB किसानों को सर्टिफाइड बीज प्रदान करती है। और साथ ही उनके मोबाइल नंबरों पर एसएमएस के माध्यम से समय समय पर नई और लाभ्वर्धक जानकारी किसानों को पहुंचाती हैं। NJB जुट किसानों को इंसेंटिवस भी देती है।

यह संस्था सामाजिक उत्थान के कामों में भी संलग्न है, जैसे कि किसानों के लड़कियों को पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप देना। NJB जुट किसानों के दशवी पास बालिकाओं को 5000 और बारहवी पास को 10000 प्रदान करती है।

जुट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (JCI):-

JCI अपने देश भर में फैले कृषि विज्ञान केन्द्रो के माध्यम से आधे दामो पर जुट के बीज किसानों को प्रदान करता रहा है। यही संस्था जुट का नुयुंतम समर्थन मूल्य (MSP) तय करने में अहम भूमिका निभाता है।

किसानों की ये शिकायत रहती है कि उन्हें प्रति क्विंटल ₹ 2400-2800 ही मिल पाते है जब कि सरकार का समर्थन मूल्य इससे काफी अधिक होता है।

Central Research Institute for Jute and Allied Fibres (CRIJAF) :-

यह वह संस्था है जो किसानों को बेहतर जुट या पटसन करने के लिए नये और व्यज्ञानिक तरीके बताता है। CRIJAF का एक उत्पाद है जिसका नाम सोना पाउडर है। इस उत्पाद के प्रयोग से जुट किसान अपनी पैदावार को 20% तक बढ़ा सकते है।

जैसा कि हम सब जानते है कि जुट कि फसल में जितना महत्व खेती के 4 महीनों का है, उतना ही या उससे भी ज्यादा महत्व उसके बाद वाले 15-20 दिनों का है। यानी जो पटसन की सड़ने वाली प्रक्रिया है, उसे भी CRIJAF का सोना पाउडर त्वरित कर देता है।

CRIJAF का 1 किलो सोना पाउडर 3 बीघा फसल के लिए पर्याप्त है।

सोना पाउडर के उपयोग से किसान अब सुनहरे पटसन के रेशे का उत्पाद कर पा रहा है। पहले वह जुट के दंटियो को पानी में डुबोए रखने के लिए उन पर मिट्टी रखा करते थे। मगर उससे घटा ये था कि उससे जुट के रेशे काले पड़ जाते थे और उनकी कीमत कम मिलती थी किसानों को।

मगर सोना पाउडर के उपयोग से किसानों को अब साफ रेशे मिल रहे है। और साथ ही उनकी फसल अब एमएसपी से भी ऊंची कीमत पर बिक रही है।

बिहार में जुट कि खेती कि स्थिति:-

जैसा कि हम आपको ऊपर बता चुके है कि बिहार पश्चिम बंगाल के बाद भारत में जुट उत्पादन में दूसरा स्थान रखता है। बिहार मे जुट की खेती देश भर का लगभग 15.5 प्रतिशत जुट का उत्पादन होता है। यह बिहार की महत्वपूर्ण नगदी फसलों में एक है।

बिहार के कृषि मंत्री डॉ. प्रेम कुमार ने हाल ही में कहा था कि

सरकार पटसन (जूट) की खेती को बढ़ावा देगी। चुकी यह पर्यावरण हितैषी फसल है और इसके उत्पादन से किसी भी तरह से पर्यावरण को क्षति नहीं होती। और साथ ही सरकार पटसन किसानों को इसकी खेती के लिए आवश्यक सहायता भी देगी।

डॉ. प्रेम कुमार, कृषि मंत्री, बिहार

पहले जुट को सिर्फ पैकेजिंग उद्योग के कच्चे माल के स्रोत के रूप में समझा जाता था। लेकिन अब वस्त्र उद्योग, पेपर उद्योग, बिल्डिंग, मृदा संरक्षण, सज्जा फर्निशिंग सामान में इसके रेशे का उपयोग होता है।

बहुत तेजी से इसकी मांग में बढ़ोतरी देखी जा रही है।बिहार में जुट के उत्पादन में निम्न लिखित जिले अग्रणी है। पूर्णिया, कटिहार, कटिहार, किशनगंज, अररिया, मधेपुरा, सुपौल एवं सहरसा।

बिहार में जुट को लेकर सरकार की कथनी और करनी में फर्क:-

बिहार की एकमात्र जूट मिल जो समस्तीपुर जिले के मुक्तापुर में मौजूद है। यानि रामेश्वर जुट मिल करीब साढ़े तीन साल पहले बंद हो गई थीं। और मिल के बंद होन से लगभग 4,200 कर्मचारी बेरोजगार हो गए। और हजारों किसानों ने जुट कि फसल छोड़ दी।

मिल से बेरोजगार हुए लोग अपनी जीविका चलाने के खासा संघर्ष कर रहे हैं। उनमें से अधिकांश आजीविका कमाने के लिए बड़े शहरों की तरफ कूच कर गए हैं। जबकि काफी लोग अभी भी मिल के खुलने का इंतजार कर रहे हैं।


मिल का सालाना टर्नओवर 125 करोड़ रुपये था। और मिल के अचानक बंद होने से पूर्णिया, अररिया, किशनगंज, सहरसा, मधेपुरा और कटिहार जिले के हजारों जूट किसानों को भी बड़ा झटका लगा है, जो इस मिल को अपनी फसल बेचते थे।

इस मिल के बंद होने से ये साफ प्रतीत होता है कि सरकार के कथनी और करनी में काफी फर्क है। वरना सरकार चलती हुई मिल को बंद नहीं होने देती।

देश में जुट कि स्थिति :-

भारत में तकरीबन 40 लाख किसान जुट कि खेती करते है। और लाखो लोग जुटे के मिलो में काम करते है। हजारों औरते जुट हस्त सिलप से अपने परिवारों का पालन पोषण कर रही है। हाल के वर्षों में जुट किसानों के ज़िन्दगी में काफी बदलाव आ रहे है।

ये सब हो पाया है, केंद्र सरकार के वस्त्र मंत्रालय के अधीन आने वाले NJB कि वजह से।

प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी चाहते है कि 2022 तक किसानों कि आमदनी दोगुनी करने कि। वह इन जुट किसानों के बिना संभव नहीं हो सकता। सरकार किसानों के लिए काफी कुछ कर रही है और काफी कुछ किया जाना बाकी है।

क्यों कि कृषि ही हमारी अर्थव्यस्था कि रीढ़ की हड्डी है। और खास कर बिहार मे जुट की खेती को बढ़ावा दिया जाना चाहिए ताकि बिहार में किसानों को आदमी का साधन मिल सके।

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