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Bhikhari Thakur Ki Jivani | Wiki | Biography

भिखारी ठाकुर यह नाम भोजपुरी समाज में किसी पहचान का मुहताज नहीं है। जो भी लोग भोजपुरी बोलते या समझते है, वो कभी ना कभी भिखारी ठाकुर के नाम से रूबरू जरुर हुए होंगे। वे देश के तमाम लोक नाट्य कलाकारों मे से एक थे। इसलिए उन्हे भोजपुरी का शेक्सपियर भी कहा जाता था।

भिखारी ठाकुर का संक्षिप्त जीवन परिचय

भोजपुरी के महान रचनाकार एवं नाट्य कलाकार भिखारी ठाकुर का जन्म 18 दिसम्बर 1887 को हुआ। उनका जन्म तत्कालीन ब्रिटिश राज के बंगाल राज्य ( वर्तमान बिहार) के छपरा जिले मे एक छोटे से गाँव कुतुबपुर मे हुआ था। और उनका स्वर्गवास 10 जुलाई 1971 को हुआ। वह एक सामान्य से नाई (हजाम) परिवार से तालूक रखते थे।

उनके पिता का नाम दलसींगर ठाकुर और उनके माँ का नाम शिवकली देवी था। पिता सहित पुरा ठाकुर परिवार अपनी जाति व्यवस्था के अंतर्गत तमाम कार्य करते थे। उस समय बिहार मे नाई समाज का काम उस्तरे से हजामत बनाना मात्र नहीं था।

बल्कि चिठी न्योतना शादी, विवाह, जन्म, एवं श्राद्ध आदि संस्कारों के कार्य किया करता था। हम आपको बताते चले कि आज भी ये व्यवस्था बिहार के कई हिस्सों मे बदस्तूर जारी है।

नाई से नृत्यकार बनने कि यात्रा

इस बात का उल्लेख उन्होंने अपने एक गीत (नीचे दिए चित्र) के माध्यम से किया था। इस एक गीत मात्र मे अपने सम्पूर्ण जीवन का सार बयां कर दिया था। ये ठीक कुछ ऐसा ही है कि, “गागर मे सागर भरना” इतने प्रतिभा के धनी थे, महान भिखारी ठाकुर  

भिखारी-ठाकुर-कि-जीवनी
भिखारी ठाकुर जीवन सार

ऊपर दिए गए गीत का अनुवाद कुछ इस प्रकार है

जब भिखारी ठाकुर 9 वर्ष के थे तब उन्होंने विद्यालय जाना प्रारंभ किया। किन्तु 1 साल बित जाने के बाद भी उन्हें 1 अक्षर का भी ज्ञान नहीं मिला। उनका पढाई लिखी में बिलकुल भी मन नहीं लगता था और उन्होंने अपनी विधिवत पढाई छोड़ दी। आज कि Generation के हिसाब से कहे तो, निश्चित रूप से भिखारी ठाकुर भी Dropout कहलाते। कुछ समय तक उन्होंने अपने गायो को भी चराया।

उसके पश्चात उन्होंने अपना खानदानी पेशा यानी कि हजामत बनाना भी सिख लिया। अब उनमे फिर से पढाई लिखाई के प्रति रूचि बढ़ने लगी। तब उनके गाँव के ही एक बनिया समाज के व्यक्ति, जिनका नाम भगवाना था। उस बनिए ने भिखारी ठाकुर को पढना लिखना सिखाया।

चुकी अब भिखारी ठाकुर हजामत बनाना सिख चुके थे, उन्होंने सोचा कि क्यों ना किसी शहर में जाके अच्छी कमाई कि जाये। इसलिए वो पहले खड़गपुर और उसके बाद मेदनीपुर गए। वही पर उन्होंने रामलीला का मंचन देखा जो उन्हें बहुत ही पसंद आया।

गाँव वापस लौटना

कुछ समय बाद वे अपने गाँव लौट आये।अब गाँव में ही गीत-कवित्त सुनने लगे और उन्हें इसमें काफी रूचि भी आने लगी। जिन गीत-कवित्त का मतलब उन्हें समझ नहीं आता तो, वे लोगो से उसका अर्थ पूछ लिया करते थे। और इसी सुनने और समझने कि कड़ी में वे खुद ही गीत-कवित्त, दोहा-छंद लिखना शुरू कर दिया।

यहाँ पर उन्होंने अपनी शादी का जिक्र भी किया है। जिसमे वे कहते है कि नयी नयी शादी- गवाना कि वजह से कई गीत-कवित्त बना तो लिया मगर उनको वह लिख ही नहीं पाए और भूल गए।

उसके पश्चात उन्होंने अपने गाँव में ही रामलीला का मंचन किया और लोगो ने रामलीला कि काफी सराहना कि। अब भिखारी ठाकुर को ये समझ आ गया कि इसी में उनका भविष्य जुड़ा हुआ है।

और उसके बाद तीस वर्ष की उम्र मे उन्होंने सन 1917 मे अपनी नाच मंडली का गठन किया। अपनी नाच के माध्यम से वे बहुत सारे सामाजिक उपदेश भी दिया करते थे। वह अपने नाटकों के द्वारा समाज मे व्याप्त कुरीतियों पर भी जोरदार वार किया करते थे।

उनके माँ बाप को भिखारी ठाकुर का नाच मे काम करना पसंद नहीं था। वो अक्सर कहा करते थे ”नाच मे तू मत रह भिखारी” मतलब कि वह नाच मे रहना छोड़ दे। मगर वे चुपके से नाच मे जाया करते थे और नाच के माध्यम से ही पैसा कमाया करते थे।

भिखारी ठाकुर का नाट्य सफर

जैसा कि हमने आपको बताया कि भिखारी ठाकुर ने तीस वर्ष की उम्र मे सन 1917 मे अपनी नाच मंडली बना ली थी। और अपने नाच के माध्यम से कई रचनाओ को जीवंत रूप दिया।

हम आपको बताते चले कि भिखारी ठाकुर भोजपुरी भाषा के सिर्फ रचनाकार नहीं थे। बल्कि ये एक अभिनेता के साथ ही स्क्रिप्ट राइटर भी थे। ये अपने नाटकों का लेखन के साथ ही उस पर खुद नृत्य और अभिनय भी किया करते थे।

भिखारी ठाकुर ने असाम, बंगाल, नेपाल आदि जगहों पर खूब टिकट शो किए, यहा तक कि उस समय के जमींदार और राजघराणे भी इनके नाटक के दीवाने थे। अंग्रेजों ने इनको “राय बहादुर” की उपाधि दी। और अंग्रेजी के बड़े विद्वान प्रो. मनोरंजन प्रसाद सिंह ने इन्हे भोजपुरी का शेक्सपियर कहा।

इनका नाच इतना मशहूर हो गया था कि लोग सिनेमा को भी भिखारी ठाकुर के नाच के लिए छोड़ने को तैयार थे। इनका नाच देखने के लिए लोग मिलों पैदल चलने से भी गुरेज नहीं करते थे। और फिर रात भर इनके नाट्य मंडली के नाच का लुफ़त उठाते थे।

भिखारी ठाकुर कि प्रमुख रचनाए

वैसे तो इन्होंने अनेकों रचनाए कि है, और उनको नाटक के माध्यम से आम जन तक पहुचया भी है। उनकी कुछ प्रमुख रचनाए कुछ इस प्रकार है:-

1) बिदेसिया
2) भाई-बिरोध
3) बेटी-बियोग या बेटि-बेचवा
4) कलयुग प्रेम
5) गबरघिचोर
6) गंगा असनान
7) बिधवा-बिलाप
8) पुत्रबध
9) ननद-भौजाई
10) बहरा बहार, आदि।

वैसे तो भिखारी ठाकुर कि सभी रचनाए महत्वपूर्ण है। मगर इन सभी मे से जिसकी सबसे अधिक चर्चा होती है वो है बिदेसिया और बेटि-बेचवा। ये दोनों इसलिए खास है क्यों कि इसमें तत्कालीन समय के समस्यााओं को बड़े ही खूबसूरती से दिखाया गया था।

भिखारी ठाकुर गीत, नाटक के अलावा भजन-कीर्तन भी लिखा और गाया करते थे। उनकी कुछ प्रमुख भजन-कीर्तन कुछ इस प्रकार है:-

1) राम – भजन कीर्तन
2) माता-भक्ति
3) रामलीला गान
4) चौवर्ण पदवीं
5) श्रीकृष्ण- भजन कीर्तन
6) शिव-विवाह
7) विविध
8) आरती आदि।

भिखारी ठाकुर का बिदेसिया नाटक

ये नाटक इसलिए भी इतना प्रसिद्ध था क्यों कि ये उस समय के बहुत ही ज्वलंत विषय “पलायन” पर आधारित था। वैसे पलायन आज भी उतना ही ज्वलंत विषय है, जिसके प्रभाव को हम सभी ने इस कोरोना काल में प्रवासी मजदूरो के दर्द के रूप मे देखा।

इस नाटक मे यह दिखाया गया है कि कैसे लोग अपने घर और परिवार को छोड़ कर पैसे कमाने के लिए दूर परदेश मे चले जाते है। इसमे एक पत्नी कैसे घर पर अकेले अपने पति का इंतज़ार करती है। और उसका पति कैसे परदेश मे पराई औरत के फेर मे पड़ जाता है।

भिखारी ठाकुर का बिदेसिया नाटक

भिखारी ठाकुर कि रचनाओ मे विशेषता

1) समतावाद

ये अपनी रचनाओ में सबको सामान रूप से देखते थे, और सामान अधिकार कि बात किया करते थे।

2) ग्रामीण समाज का यथार्थ चित्रण

चुकी भिखारी ठाकुर खुद भी ग्रामीण समाज से आते थे, तो इनके रचनाओ में ग्रामीण जीवन का यथार्त चित्रण देखने को मिलता था।

3) जनता का दर्द

आप इनकी रचनाओ में आम जन के दुःख दर्द का चित्रण पाते है।

4) पलायन, नशाखोरी आदि के प्रति जागरूकता

उस समय कि समस्याओ पर लोगो का ध्यान आकर्षण करना। ये नशा के सख्त खिलाफ थे और पलायन का दर्द तो इन्होने खुद ही सहा था।

5) सामाजिक कुरितयो पर प्रहार

अपने नाटक के माध्यम से सामाजिक कुरितयो पर जोरदार प्रहार करते थे। बाल विवाह बे मेल विवाह आदि के धुर विरोधी थे।

6) स्वस्थ मनोरंजन

और सबसे बड़ी बात ये थी कि, इनकी रचनाये एकदम साफ़ सुथरी थी। जो आज हम भोजपुरी फिल्म या गानों में जो अश्लीलता देखते है वह उनकी रचनाओ में बिलकुल भी नहीं थी।

भिखारी ठाकुर के बारे मे प्रमुख साहित्यकारों के कथन एवं उनपर प्रमुख पुस्तके

1) राहुल सांक्रितयायन ने इनको भोजपुरी का अन्नगण हीरा कहा था।

2) प्रो. मनोरंजन प्रसाद सिंह ने इन्हे भोजपुरी का शेक्सपियर कहा।

3) डा. उदय नारायण तिवारी ने इन्हें भोजपुरी का जनकवी कहा था।

प्रमुख पुस्तके

1) पुस्तक : भिखारी ठाकुर, लेखक: महेश्वर प्रसाद

2) पुस्तक : भिखारी ठाकुर भोजपुरी के भारतेंदु, लेखक: भगवती प्रसाद द्विवेदी

3) पुस्तक : भिखारी, लेखक: महेश्वराचर्या

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